बुध लाल किताब
खुला करते सुराख़ मैदान बढता, बढ़ी अक्ल इसकी खर्च खुद जो करता।
उल्ट पाँव चमकादड लटका, छुपी शरारत* करता है।
*बुध जिस घर में बैठा हो उस घर का मालिक (पक्का घर का स्वामी नहीं) जब नं ९ में बैठ जाए तो वो बुध की तरह खाली चक्कर या बेकार निष्फल होता है.
पर पक्का जिस ग्रह का होगा, वहां वही बन बैठता हो।
साथ बुरे ग्रह सबसे मंदा, भला भले से होता है।
चन्द्र राहु का हो जब झगडा, बुध* मारा खुद जाता है।
*बुध मंदा हो तो नाक छेदन, दांत साफ़ रखना और लडकियो की सेवा करना सहायक हो।
बुध नजर जब रवि को करता, दर्जा दृष्टि कोई हो।
असर भला सब दो का होगा, सेहत, माया या दिमागी हो।
बुध चन्द्र से हो जब पहले*, रेत जहर पानी भरता हो।
*खासकर गुरु और चन्द्र मंदे हो।
३, चोथे, ७,९ ग्रह बैठे, राख हुए कुल जलता हो।
शुक्र बैठा जब बुध से पहले, असर राहु का मंदा हो।
बुध पहले से शुक्र मिलते, केतु भला खुद होता हो।
बुध शुक्र ना इक्कठे मिलते, उम्र जाया यों करता हो।
शत्रु* दोनों के साथ जो बैठे, असर दोनों न मिलता हो।
*शुक्र के शत्रु सूरज, राहु, चन्द्र। बुध के शत्रु चन्द्र वगैरा।
घर २,४* या ६ में बैठा, राजा योगी बुध होता हो।
*सिर्फ खाना नं ४ में राज योग है क्योंकि इसमे राहु-केतु का प्रभाव शामिल नहीं है। बाकी हर जगह पाप बुध के दायरे में होगा।
सातवे घर में परस होता, ग्रह साथी को तारता हो।
९-1२ - ८ तीसरे ११ , थूके* कोढ़ी बुध होता हो।
*जहर से भरा बुध
घर पहले १० घूमता राजा, परिवार धन ५ देता हो।
खाना नं ३: कबीले खानदान पर भारी, मंदा।
खाना नं ८: जानदार चीजो और जानो पर मंदा।
खाना नं ९: टेवे वाले की अपनी खुद की हर हालत धन, दौलत, मालोजान पर मन्दा।
खाना नं ११ : अपनी खुद की आमदन की नाली में रोडा ३४ वर्ष तक।
खाना नं १ २: अपने कारोबार और रात की नींद बर्बाद।
जहर से भरा बुध स्वयं मारा जाए तो बेशक मगर १ से ४ (सिवाय खाना नं ३ जहाँ दुसरो के लिए थूकने वाला कोढ़ी) पर मंदा न होगा।
५ - १ ० में डर तो जरूर देगा।
११ -१ २ में हडकाए कुत्ते की तरह जिसे काटे वह आगे हड्काकर भागे।
बुध अमूमन १-२ और ९-१ २ में शनि के साथ मिलकर मंदी हरकत करता है, शनि की सहायता करता करता है। विषैला लोहा, मार देने वाली विष, निर्धन करने वाला होगा।
३ - ८ तक सूर्य की सहायता करता है। धन के लिए उत्तम चाहे हजारों दुःख खडे करे।
बुध का राहु से सम्बन्ध
जब बुध और राहु दोनों इकट्ठे हो, या दोनों में से हर कोई जुदा जुदा मंदे घरो में (बुध अमूमन ३,८,९,१२), राहु अमूमन १,५, ७, ८,१ १) तो अगर जेलखाना नहीं तो अस्पताल या पागल खाना या कब्रिस्तान या वीराना तो अवश्य मिलेगा। कसूर या बिमारी चाहे हो चाहे न हो। फजूल दुःख, मंदे खर्च आम होगे। फौलाद का बेजोड़ छल्ला जिस्म पर सहायक होगा। और दोनों ग्रहो की चीजे या काम करने से बुध राहु इक्कठे ही गिने जायगे।
बुध का अर्थ: बहन, बुआ, फूफी, मासी, साली, व्यापार तथा दुसरे बुध के काम होगा।
राहु: ससुराल, नाना, नानी, बिजली, जेलखाना आदि राहु के काम है।
बुध का केतु से सम्बन्ध:
जब दोनों दृष्टि से बाहम मिल रहे हो तो बुध का आम साधारण जैसा की टेवे में बैठा होने के हिसाब से पर केतु का फल नीच या मंदा ही होगा। बुध के बिना सब ग्रहो में झुकने झुकाने की शक्ति कायम ना होगी।
बुध के काम जैसे बुद्धि के काम, हुनरमंदी, दस्तकारी, दिमागी बुद्धिमता से धन कमाने का ३ साल आयु का समय। बुध की हुकूमत होना, किसी भी चीज के न होने की हालत, बुध (का होना या) की (उसकी) हस्ती कहलाती है।
जहर से भरा बुध खाना नं १ से ४ में (सिवाय ३) साथ बैठे ग्रह पर कभी मंदा असर न देगा। स्वयं चाहे अपना बुरे असर देवे मगर कोई मंदी घटना न करेगा। १ १ से १ २ को जिस ग्रह को काटे वो हड़काय कुत्ते की तरह दुसरो को भी आगे हडकाता चला जाए।
चन्द्र राहु के झगडे में बुध बर्बाद होगा।
बुरे ग्रह के साथ बैठा उस ग्रह का प्रभाव और भी मंदा कर देगा और भले ग्रह के साथ बैठने से न सिर्फ उस भले ग्रह का भी और भला कर देगा बल्कि स्वयं भी भला हो जायगा यानी जिससे मिलेगा उसकी ही शक्ति का प्रभाव देगा। यह ग्रह वृक्ष पर उल्टे लटके चम्कादड की तरह अंधेरे में छूपी हुई शरारत करता होगा। मकान में मंदे बुध की पहली निशानी होगी की नये बनाए मकान में किसी न किसी कारण से सिर्फ सीढियाँ गिराकर दोबारा बनने का बहाना होगा. चार दिवारी और छत नहीं बदली जायगी।
मन्दे बुध वाले को नाक छेदन, फिटकरी से दांत साफ़ करना, लडकियो की पूजा करना सहायक होगा। अगर घर के बहुत से सदस्यों का बुध खराब हो या स्वयं अपना बुध टेवे में मंदे घरो में आता रहे तो बकरी की सेवा या बकरी दान करना उत्तम फल देगा। अगर जुबान में थथलापन हो तो वह थथलापन के अलावा और कोई मंदा फल न देगा। चाहे टेवे में मंदा होवे। घर में एक के बाद एक बीमार पड जाने की लानत खड़ी हो जाने के समय बुध से बचाव के लिय कद्दू (हलवे वाला जो पक्का रंग पीला और अन्दर से खोखला हो चुका हो, सब्जी वाला हरा कद्दू नहीं) सालम का सालम (पूरा साबुत) धर्म स्थान में देना सहायक होगा।
शुक्र मंदा हो तो बुध मदद करता है पर मगर पाप मंदे के समय बुध भी मंदा होता है और मौत गूंजती होगी। और उस समय अगर शुक्र ऐसे घरो में हो जहाँ बुध मंदा होता है तो शुक्र भी बर्बाद करेगा।
अकेला बैठा हुआ बुध निकम्मा तथा बिना शक्ति का होगा और उसका फल देगा जिसका की वो पक्का घर है। (न की घर के मालिक की तरह) मसलन बुध खाना नं १ और सूरज खाना नं १२ तो बुध वो ही फल देगा जो सूरज का खाना नं १२ में लिखा है।
ऊपर ही की तरह अगर बुध बैठा हो तो बुध का अगर कोई मंदा असर होगा तो वो मालिक याने मंगल पर होगा और खाना नं १ का मालिक याने मंगल खाना नं ९ में बैठ जाए तो मंगल बेबुनियाद और मंदा होगा। इसी तरह बुध जहाँ भी हो और उस घर का मालिक खाना नं ९ में बैठे तो मंदा और बेबुनियाद होगा।
पूरी सूची ऐसे है:
बुध खाना नं १ सूर्य की तरह फल देगा / और अगर खाना नं ९ में मंगल बैठ जाय तो मंगल का फल मंदा और बेबुनियाद।
बुध खाना नं २ : गुरु / शुक्र
बुध खाना नं ३ : मंगल / शुक्र
बुध खाना नं ४ : चन्द्र / चन्द्र
बुध खाना नं ५ : गुरु / सूर्य
बुध खाना नं ६ : केतु / केतु, बुध
बुध खाना नं ७ : शुक्र, बुध / शुक्र
बुध खाना नं ८ : मंगल , शनि / मंगल
बुध खाना नं ९ : गुरु / गुरु
बुध खाना नं १० शनि / शनि
बुध खाना नं १ १ : गुरु / शनि
बुध खाना १ २ : राहु / राहु , गुरु
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मसलन बुध अगर खाना नं १० में हो तो शनि की तरह फल दैग. गर शनि खाना नं ९ में जा कर बैठ जाय तो शनि का फल ख़राब कर देगा।
दुसरे ग्रह से बुध का सम्बन्ध:
गुरु से : राख
सूर्य से: पारा
चन्द्र से : मानिंद मीन
शुक्र से: दही
मंगल से : शेर के दांत
शनि से : कलई
राहु से: हाथी की सूंड
केतु : कुत्ते की पूँछ
बुध और शनि मुश्तरका दिवार वाले घरो में हो तो शहतीर (बीम) या गार्डर खडे कर के उन पर सेहन बनाने से बुध बर्बाद होगा। पागलपन, सर की खराबियाँ, बहिन, बुआ फूफी बर्बाद होगे।
बुध का अंडा अक्ल का बीज नहीं मग अक्ल की नक़ल ही बुध का अंडा है जो कुंडली के खाना नं ९ में पैदा होता है।
खड़ा अंडा, मैना, आम, बकरी बुध खाना नं २-४-६
लेटा अंडा, भेड़ : ८-१ ०
गन्दा अंडा : खाना नं १२
आम हालत माँ-धी खाना नं १-७
खाना नं ३, ९ : चमकादड, किसी चीज का साया या अक्स मगर असल चीज किसका साया है पता न चले, कहाँ है पता न चले।
खाना नं ५: दूध वाला बकरा और दाढ़ी वाली बकरी।
खाना नं ११ : चोडे पत्ते वाले वृक्ष, मैना का उपदेश, लाल कंठी वाला तोता, बृहस्पति की नक़ल।
बुध की नाली
हर तीसरे घर के ग्रह यानी १-३ के ग्रह आपस में मिला नहीं करते। इसी लिए उनका असर भी मिला नहीं करता। यदि बुध की नाली मिल जाय तो बुरा प्रभाव न देगे बेशक अच्छा दे या न दे।
शुक्र बुध इक्कठे शुभ होते है जिनका खाना नं ७ इक्कठा है। लेकिन जब जुदा जुदा हो, १-७ हो तो दोनों का फल रददी। मगर १-७ न हो और जुदा जुदा हो तो बुध जिस घर में बैठा हो तो वह बुध उस घर के सब ग्रहो का फल शुक्र के बैठे घर में नाली लगा कर मिला देता है। मगर शुक्र अपने घर का फल बुध वाले घर में नहीं मिलाता है। संक्षेप में जब शुक्र का राज्य हो तो बुध बैठा होने वाले घर का शुक्र बैठा होने वाले घर में असर मिला समझा जायगा। मगर बुध की तख़्त की मल्कियत होने के समय, अकेले ही उन ग्रहों का होगा जिनमे बुध है।
बुध शुक्र से पहले तो नेक मिलावट मगर शुक्र पहले तो मंदा फ़ल.
बुध के साथ शुक्र के शत्रु ग्रह हो तो शुक्र बुध का असर नहीं मिलने देगा। मगर मित्र ग्रह हो तो बुध चाह कर भी नेक फल मिलने से रोक नहीं सकता।
जब बुध शुक्र १-७ हो और राहु-केतु भी साथ में १-७ हो तो मंदा फल खासकर जब बुध होवे शुक्र के बाद के घरो में और और साथ ही राहु-केतु का दौरा भी आ जाय यानी उनमे से एक तख़्त की मल्कियत के हिसाब से आ जाय, और राहु-केतु-शुक्र-बुध मिल रहे हो और राहु-केतु के राज का समय हो तो कुंडली वाले के लिये बड़ा भयानक समय होगा। पर गर बुध शुक्र के बाद के घरो में न हो तो मंदा फल न होगा। सिर्फ राहु-केतु का मन्द दौरा होगा। शुक्र या बुध का दौरा के समय ( याने जब वो खाना नं १ में दौरा करे) लानत न होगी।
इस बुध की खास नाली का लाभ मंगल से संभंधित है। कई बार मंगल को सूर्य की सहायता मिलती मालूम नहीं होती या चन्द्र का साथ होता हुआ मालूम नहीं होता, इस नाली के कारण से मंगल को सहायता मिल जाती है। और मंगल जो सूर्य और चन्द्र के बिना मंगल बद होता है, मंगल नेक हो जाता है। इसी तरह मंगल बुध बाहम शत्रु है, मंगल के बिना शुक्र की संतान कायम नहीं रहती। बुध जब मंगल के साथ होवे तो कंठी वाला तोता होगा। वो स्वयं उठ कर और मंगल को साथ उठा कर शुक्र से मिला देगा और शुक्र की संतान बचा लेगा, जिससे कुंडली वाला निसंतान न होगा। ऐसी हालत में बुध या शुक्र के बाहम पहले या बाद के घरो में होने बुध के जाती असर की बुराई की शर्त न होगी, भलाई का प्रभाव जरूर होगा। क्योंकि मंगल ने शुक्र के दौरा के पहले साल में अपना असर अवश्य मिलाना है यानी बुध की नाली १ ० ० % , ५ ० %, २ ५ % और अपने से सातवे होने की दृष्टि से बाहर एक और ही शुक्र और बुध की बाहम दृष्टि है और यह है इस लिये कि शुक्र में बुध का फल मिला हुआ ही माना जाता है। मिलावट में राहु का साथ हो जाने के समय जब शुक्र ने बुध को बाहर ही रोक दिया तो शुक्र में बुध का फल न मिला तो बुध के बिना शुक्र पागल होगा या शुक्र खाना नं ८ का फल होगा। इसी तरह शुक्र के बिना बुध का असर सिर्फ फूल होगा फल न होगा याने विषय की शक्ति तो होगी पर मंगल की बच्चा पैदा करने की ताकत का शुक्र हो फायदा न मिल सकेगा।
बुध के दाँत
दाँत कायम हो तो आवाज अपनी मर्जी पर काबू में होगी यानी गुरु की हवाई शक्ति पर (संतान के जन्म) काबू होगा। मंगल भी साथ देगा यानी जब तक दाँत (बुध) न हो चन्द्र मदद देगा, जब दाँत न थे तो दूध दिया जब दांत दिय तो क्या अन्न (शुक्र) न देगा। यानी जब बुध होय तो शुक्र की अपने आप आने की आशा होगी। लकिन जब दांत आ कर चले गये (और मुहँ के ऊपर के जबडे के सामने के) तो अब मंगल बुध का साथ न होगा। न ही गुरु पर काबू होगा या उस व्यक्ति या स्त्री की अब संतान का समय समाप्त हो चूका होगा जब यह दांत आ कर चले गये या ख़त्म हो गए। दांत गये दन्त-कथा गयी बृहस्पति ख़त्म तो लावल्द हुआ।
बुध का भेद
जब कुंडली मुकम्मल हो और खाना नं १ का अक्षर देकर हर तरह से बात समाप्त हो चुकी हो, तो बुध का सारा भेद या स्वभाव देखने के लिए नीचे का असूल काम में आयगा।
हर ग्रह की शक्ति को उस खाना के नं से गुना करे। ९ ग्रहों का जोड़ करे। ९ से भाग करे। बाकि बचा देखे
० बचे तो बुध का स्वभाव कुंडली के खाना नं ५ में बैठे ग्रह की तरह होगा। याने बुध के खाली ढांचे में राहु-केतु पकडे गये। याने जब बुध की शक्ति सिफर हो तो उस कुंडली में राहु केतु का असर दुसरे ग्रह पर न होगा। मगर राहु-केतु का जाती असर जरूर होगा। क्योंकि बुध में राहु-केतु का जाती असर शामिल गिनती है सिवाय बुध खाना नं ४ के। राहु घडी की चाबी तो केतु घडी का कुत्ता है। दोनों को चलता गुरु ही है। मगर घूमते बुध के दायरे में है। गर खाना ५ खाली तो जिस घर में और जैसा सूरज, वैसा ही बुध का फल होगा।
अगर जो शेष बचे तो उस से सम्बंधित ग्रह कुंडली में जहाँ बैठा हो उसकी शक्ति तथा स्वभाव का बुध होगा। यह स्वभाव बुध का अपना स्वभाव होगा जैसा की शनि का स्वयं का स्वभाव राहु - केतु - शनि के पहले या बाद के घरो में होने का है।
मसलन :
बृहस्पति खाना नं ४ में उच्च है। बृहस्पति की शक्ति ९ ग्रहो में ६/९ है - गुना किया ४ गुणा ६/९ = २ ४ / ९
सूर्य खाना नं ३ में : ३ गुणा ९/९ = २ ७ / ९
चन्द्र खाना नं ६ ६ गुणा ८/९
शुक्र खाना नं ५ ५ गुणा ७/९
मंगल खाना नं ५
बुध खाना नं ३
शनि खाना नं १ २
राहु खाना नं २
केतु खाना नं ८
सब ९ ग्रहो को गुणा कर के जोडे। मसलन जोड़ आया २ १ ९ / ९ = २ ४ + ३/९
पूरे हिस्से छोड़ दे यानी ३/९ ही जो बचा लेना है। ३/९ शक्ति तो शनि की है. अब शनि खाना नं १ २ में बैठा था तो यह बुध का स्वभाव हुआ। याने बुध जो खाना नं ३ में बैठा है वो खाना नं 1 में बैठे शनि के स्वभाव का है।
शनि का स्वभाव देखे : पहले राहु फिर केतु फिर अंत में शनि है। ऐसे में शनि का अपना प्रभाव मंदा होता है। इस लिए जब बुध का समय होगा तब शनि दो गुना मंदा होगा। क्योंकि बुध शनि दोनों ही खराब स्वाभाव के है।
बुध का स्वभाव जिस ग्रह से मिलता हो उपाय उस ग्रह दोनों को मिला कर करना होगा।
खाना नं ३ या ९ के लिए लोहे की लाल गोली ले पर अगर बुध नेक स्वाभाव हो तो शीशे की गोली ले और उस रंग को शामिल करे जो ऊपर की तरह से ग्रह आया।
खाना नं १२ के बुध के लिए नष्ट ग्रह वाले की मदद का इलाज या केतु ( कुत्ता रंग बिरंगा या काल सफ़ेद पर लाल रंग न हो ) कायम करना शुभ होगा। असल में बुध खली खलाव (जगह), सफ़ेद कागज़, शीशा और फिटकरी होगा। जब उस पर जरा भी मैल या किसी और ग्रह का ताल्लुक हुआ तो उसकी गोलाई का ठिकाना मालूम करना वैसा ही मुश्किल होगा जैसा की जमीन का धुरी माप लेना। इसलिए उस की जांच पूरी कर लेना जरूरी होगा। बहरहाल बुध नं ३ या ९ या कही और का मंदा प्रभाव उस साल या उस समय नेक होगा जिसमे की वो स्वयं अपने स्वभाव के उसूल पर नेक हो जावे, मगर जन्म के पहले साल या पहले मास उसका हिरा जहर से खाली न होगा। अगर होगा तो जन्म मरण का झगडा ही समाप्त होगा। सूर्य और मंगल के मुकाबले में बुध का फल गायब। या ससूर्य मंगल नेक के समय अपना आधा समय चुप होगा फिर भी छुपी शरारत जरूर करता होगा। मंगल नेह है ही वही जिसमे सूर्य हो। और वो सूर्य के साथ चुप होगा। सूर्य रेखा और चन्द्र रेखा दिल को मिलने त्रिकोण मंगल बद को असर देगी जिस का प्रभाव दिल की शक्ति पर होगा चाहे बुरी तरफ ही क्यों न हो। बहरहाल दिल की शक्ति अधिक होगी।
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दाँत कायम हो तो आवाज अपनी मर्जी पर काबू में होगी यानी गुरु की हवाई शक्ति पर (संतान के जन्म) काबू होगा। मंगल भी साथ देगा यानी जब तक दाँत (बुध) न हो चन्द्र मदद देगा, जब दाँत न थे तो दूध दिया जब दांत दिय तो क्या अन्न (शुक्र) न देगा। यानी जब बुध होय तो शुक्र की अपने आप आने की आशा होगी। लकिन जब दांत आ कर चले गये (और मुहँ के ऊपर के जबडे के सामने के) तो अब मंगल बुध का साथ न होगा। न ही गुरु पर काबू होगा या उस व्यक्ति या स्त्री की अब संतान का समय समाप्त हो चूका होगा जब यह दांत आ कर चले गये या ख़त्म हो गए। दांत गये दन्त-कथा गयी बृहस्पति ख़त्म तो लावल्द हुआ।
बुध का भेद
जब कुंडली मुकम्मल हो और खाना नं १ का अक्षर देकर हर तरह से बात समाप्त हो चुकी हो, तो बुध का सारा भेद या स्वभाव देखने के लिए नीचे का असूल काम में आयगा।
हर ग्रह की शक्ति को उस खाना के नं से गुना करे। ९ ग्रहों का जोड़ करे। ९ से भाग करे। बाकि बचा देखे
० बचे तो बुध का स्वभाव कुंडली के खाना नं ५ में बैठे ग्रह की तरह होगा। याने बुध के खाली ढांचे में राहु-केतु पकडे गये। याने जब बुध की शक्ति सिफर हो तो उस कुंडली में राहु केतु का असर दुसरे ग्रह पर न होगा। मगर राहु-केतु का जाती असर जरूर होगा। क्योंकि बुध में राहु-केतु का जाती असर शामिल गिनती है सिवाय बुध खाना नं ४ के। राहु घडी की चाबी तो केतु घडी का कुत्ता है। दोनों को चलता गुरु ही है। मगर घूमते बुध के दायरे में है। गर खाना ५ खाली तो जिस घर में और जैसा सूरज, वैसा ही बुध का फल होगा।
अगर जो शेष बचे तो उस से सम्बंधित ग्रह कुंडली में जहाँ बैठा हो उसकी शक्ति तथा स्वभाव का बुध होगा। यह स्वभाव बुध का अपना स्वभाव होगा जैसा की शनि का स्वयं का स्वभाव राहु - केतु - शनि के पहले या बाद के घरो में होने का है।
मसलन :
बृहस्पति खाना नं ४ में उच्च है। बृहस्पति की शक्ति ९ ग्रहो में ६/९ है - गुना किया ४ गुणा ६/९ = २ ४ / ९
सूर्य खाना नं ३ में : ३ गुणा ९/९ = २ ७ / ९
चन्द्र खाना नं ६ ६ गुणा ८/९
शुक्र खाना नं ५ ५ गुणा ७/९
मंगल खाना नं ५
बुध खाना नं ३
शनि खाना नं १ २
राहु खाना नं २
केतु खाना नं ८
सब ९ ग्रहो को गुणा कर के जोडे। मसलन जोड़ आया २ १ ९ / ९ = २ ४ + ३/९
पूरे हिस्से छोड़ दे यानी ३/९ ही जो बचा लेना है। ३/९ शक्ति तो शनि की है. अब शनि खाना नं १ २ में बैठा था तो यह बुध का स्वभाव हुआ। याने बुध जो खाना नं ३ में बैठा है वो खाना नं 1 में बैठे शनि के स्वभाव का है।
शनि का स्वभाव देखे : पहले राहु फिर केतु फिर अंत में शनि है। ऐसे में शनि का अपना प्रभाव मंदा होता है। इस लिए जब बुध का समय होगा तब शनि दो गुना मंदा होगा। क्योंकि बुध शनि दोनों ही खराब स्वाभाव के है।
बुध का स्वभाव जिस ग्रह से मिलता हो उपाय उस ग्रह दोनों को मिला कर करना होगा।
खाना नं ३ या ९ के लिए लोहे की लाल गोली ले पर अगर बुध नेक स्वाभाव हो तो शीशे की गोली ले और उस रंग को शामिल करे जो ऊपर की तरह से ग्रह आया।
खाना नं १२ के बुध के लिए नष्ट ग्रह वाले की मदद का इलाज या केतु ( कुत्ता रंग बिरंगा या काल सफ़ेद पर लाल रंग न हो ) कायम करना शुभ होगा। असल में बुध खली खलाव (जगह), सफ़ेद कागज़, शीशा और फिटकरी होगा। जब उस पर जरा भी मैल या किसी और ग्रह का ताल्लुक हुआ तो उसकी गोलाई का ठिकाना मालूम करना वैसा ही मुश्किल होगा जैसा की जमीन का धुरी माप लेना। इसलिए उस की जांच पूरी कर लेना जरूरी होगा। बहरहाल बुध नं ३ या ९ या कही और का मंदा प्रभाव उस साल या उस समय नेक होगा जिसमे की वो स्वयं अपने स्वभाव के उसूल पर नेक हो जावे, मगर जन्म के पहले साल या पहले मास उसका हिरा जहर से खाली न होगा। अगर होगा तो जन्म मरण का झगडा ही समाप्त होगा। सूर्य और मंगल के मुकाबले में बुध का फल गायब। या ससूर्य मंगल नेक के समय अपना आधा समय चुप होगा फिर भी छुपी शरारत जरूर करता होगा। मंगल नेह है ही वही जिसमे सूर्य हो। और वो सूर्य के साथ चुप होगा। सूर्य रेखा और चन्द्र रेखा दिल को मिलने त्रिकोण मंगल बद को असर देगी जिस का प्रभाव दिल की शक्ति पर होगा चाहे बुरी तरफ ही क्यों न हो। बहरहाल दिल की शक्ति अधिक होगी।
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बुध लाल किताब
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