गुरु बृहस्पति लाल किताब
विधाता जगत गुरु ब्रह्मा जी
दो रंगी दुनिया के रंग दोनों देखो*, मगर आँख दुःख जाय, अपनी न देखो**।
**दर्द
आँख, मकानों, मशीनों की खराबियाँ, शत्रु या साँप की मंदी घटनाएँ, धोखादेही
या जहमत (uncertain in actions, directions) की बीमारियाँ आदि।
इस शनि रुपी आँख से देखते हुए, इस संसार को सच मान कर आखिर कब तक इन्सान इस संसार में जिन्दा रह सकता है?
मनुष्य
की मुट्ठी के अन्दर खाली खलाव या आकाश में फैले रहने, हर दो जहान में जा
सकने और सारे ब्रहमांड तथा मनुष्य के अन्दर बाहर चक्कर लगाने वाली हवा को
ग्रह मंडल में बृहस्पति के नाम से याद किया जाता है। जो बंद हालत में कुदरत
के साथ कही हुई भाग्य का भेद और खुल जाने पर अपने जन्म से पहले भेजे हुए
खजाने का गुप्त और बंद और खुली हर दो हालत की बीच की हर प्राणी के जन्म
लेने तथा मर जाने का बहाना होगी।
बृहस्पति,
ये ग्रह दोनों ही जमानो का स्वामी माना गया है और बृहस्पति सब ग्रहो का
गुरु है अतः एक ही घर में बैठे बृहस्पति का असर बेशक राजा या फ़कीर, सोना या
पीतल, सोने की लंका तक दान कर देने वाला प्राणी या सारे जमाने का चोर साधू
जिसका धर्म ईमान न हो हर दो हालत में से चाहे किसी भी ढंग का हो, मगर उसका
बुरा असर शुरू होने की निशानी सदा शनि के प्रभाव के जरिए होगी और शुभ
प्रभाव बृहस्पति के गुरु की चीजे या जद्दी जगह से उत्पन्न होगी।
बृहस्पति की अलग अलग खाना में में दो रंगी चाले
खाना शुभ अशुभ
खाना नं १ प्रसिद्ध राजा फ़कीर कमाल का मगर निर्धन
खाना नं २ सबको बाँटने वाला जगत गुरु अपने घर को बर्बाद करे या कुलनाशक
खाना नं ३ शेरो का प्रसिद्ध शिकारी बुजदिल, मनहूस, भेदभाव
खाना नं ४ राजा इन्द्र और विक्रमादित्य के अपनी बेडी डुबाने वाला नाविक
साया का स्वामी
खाना नं ५ औलाद के जन्म दिन से प्रसन्न बच्चा पेट से ही मुर्दा पैदा हो
खाना नं ६ हर वस्तु अपने आप मिले निर्धनता से दम घुटता है
खाना नं ७ धर्म कार्य का मुखिया व् धनी इसका दत्तक पुत्र भी दुखी हो
खाना नं ८ सोने की लंका भी दान कर दे धन खजाने की राख का स्वामी
खाना नं ९ घरेलू चमकता सोना, पैतृक नस्ल भाग्य में रेत बराबर भी चमक नहीं
खाना नं १ ० जिस कदर टेढ़ा चले मिटटी सोना हो निर्धन, दुखी
खाना नं १ १ साँप भी सजदा करे कफ़न भी पराया हो
खाना नं १ २ दरिया की तरह धन घर में आए धन का पर्योग न कर सके चाहे राजधानी का स्वामी
क्यों न हो
बृहस्पति में मिलावट
नर ग्रह की मिलावट साथ - दृष्टि ताम्बा सोना हो
स्त्री " " " " " मिटटी से भरा पानी उत्तम ढूध हो
बृ के बिना सब ग्रहो में मिलने मिलने की दृष्टि की शक्ति पैदा न होगी
पापी ग्रह मंदे तो बृ पीतल , जहरीली गैस
खाना
नं १ २ के राहु गुरु दोनों मालिक है। बृ दोनों जहाँ गैबी तथा दृष्टि
गोचर का मालिक है जिसने आने जाने के लिय नीले रंग में राहु का आसमानी
दरवाजा है अतः जैसा ये दरवाजा होगा वैसा ही हवा के आने जाने का हाल होगा।
अगर राहु टेढ़ा चलने वाला हाथी, साँस को रोकने वाला कड़वा धूआँ या जमीन को
पाताल से भूचाल बनकर हिलाता रहे तो बृ भला नहीं हो सकता।
उच्च राहु या पहले बैठा, आया तरफ गुरु पहली हो
दीगर हालत में गुरु गृहस्थी, मालिक जहाँ एक होता हो।
अकेला गुरु (हर तरह से) चाहे दृष्टि आदि से कितना ही मंदा हो, बुरा प्रभाव जातक पर न होगा।
बर्बाद हो चूका बृ आम असर के लिए बुध गिना जाता है। जिसका फैसला जैसा बुध होगा।
शत्रु, पापी ग्रह से साथ दृष्टि से बर्बाद तो बुध ही का काम देगा। उपाय लायक होगा। जिसके लिए शत्रु - पापी का उपाय करे।
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