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Sunday, 10 March 2013

Jupiter ( Guru Brihaspati ) Lal Kitab

गुरु बृहस्पति लाल किताब  

असर जलता दो जहानA का, ग्रहणB शत्रुC साथी जो।
चोर बनता ६ ता १ १ , मँगल टेवे जहरीD जो।

A -  दोनों ही  सामने या छुपे हुए जहान या बृ के नेक और बुरे हर दो तरह के असरो की शक्ति।
B -  सूर्य ग्रहण,  चन्द्र ग्रहण, बृ के शत्रु ग्रह बुध, शुक्र, राहु या शनि पापी ग्रह।
C - खाना नं २-९-५-१ १  में बुध - राहु एक साथ या जुदा जुदा हो तो बृ का असर मंदा होगा।
D - मंदा मँगल बद या मंगलीक जिसके लिए मं खाना नं ४ देखे।
    
बृहस्पति १ ता ५ और १ २  में बैठा हो तो शनि - सूर्य दोनों की मदद करता है पर ६ ता १ १  में केवल शनि की मदद करता है।

बृहस्पति १ २ घरो में आम हलत
विद्या आयु घर पहले सोना* गुरु जमा घर दूसरा हो**।     *बृ जागता तो। ** ८ खाली तो उत्तम      
शेर गरजता तीसरे माना , भला बैठा बुध जब तक तो। 
चोथे विक्रमी* तख़्त बत्तीसी*   पांच पूर्ण ब्रह्म होता हो।  *  राजा विक्रमादित्य  **  ३ २ परियों के कंधो पर
                                                                                      उडने वाला राजा विक्रमादित्य का सिंहासन 
छठे मिले हर चीज मुफ़्ती, दुखिया बेटे घर सातवे हो।
 भाग्य उदय ८ आयु हो लम्बी, योगी ९ वयं स्वयं बनता हो।
दसवें कमी धन, चाहे अक्ल हो कितनी, धर्म कर्म घर १ १ हो।
राहु केतु पाप हालत पर रात की निद्रा, गृहस्थ सुखी घर १ २ हो।
काम छोडे जब राम भरोसा, शत्रु बैरी सर कटता हो। 

बृ का खाना होगा  

२                      धर्म स्थान                                  वह जगह जहान धर्म का करूबर एवं पूजा उपदेश हो। 
१ १                   बृ के धर्म दरबार लगाने और बृ की अपने         धर्म अदालत अलंकारी आवाज का दरबार 
                        जज की भाँती बैठने की जगह     
१ २                   बृ की समाधी लगाने की जगह      परलोक की हवा, गुप्त धार्मिक विचार, प्रज्ञा

५                      संतान के खून में धर्म और सोने का हिस्सा पैदा करने वाला गृहस्थी परिवार का स्वामी। 
९                       सोने की तरह पृथ्वी (पूर्वजो की हालत) जैसा सोने  का देवता, दोनों जहान के धर्म की नाली, घर से ही धर्म का स्वामी।    

१-४-७-१० जातक के अपने लिए उत्तम, प्रकृति साथ लाई हुई भाग्य का भेद, अपने शरीर के लिए उत्तम, हकीकी और दुनियावी प्रेम की ताकत, आंतरिक शक्तियों, दुनियावी ताकत की बरकत  हो। 

१ ता ५  तथा १ २ : उत्तम आराम देने वाला , उत्तम सहायक, सुरक्षा जैसा बृहस्पत होगा।    

६ ता १ १  मंदी हालत बृ लोहे जैसा निर्धन 
३,५,९,११   बाहरी चाल, व्यवहार 
                 अपने जन्म से पहले भेजे खजाने का भेद ही 
                 अगले जहान में ले जाने की नेकी चीज को पा सकने की शक्ति हो।
                 चमक जो मार्ग दर्शक होगी।
२,८,१२       धन के लिए दरम्यानी हालत में रखेगा, मगर रूहानी हालत में उत्तम
                  जागती किस्तम का स्वामी हो
                  हर दो जहान, जन्म से मृत्यु तक हर समय मध्य हालत देगा।      
६                संसार की उलझन में जकड़ा साधारण साधू की तरह के भाग्य के चक्र में घूमते गृहस्थी की
                  तरह सांस लेता हो।

बृ का ग्रहो से सम्बन्ध 

राहु :  जन्म या वर्ष कुंडली में जब राहु उत्तम, उच्च या बृ से पहले घरो में हो यानी १ ता ६ (३-६ विशेषकर) और बृ के मित्र ग्रह उत्तम हो  तो मनुष्य को स्वयं अपने भाग्य और दुसरो की सहायता की हिम्मत में बढावा देगा और सब और आराम अपने आप मिलेगे। बृ बाह्यय और गुप्त शक्ति, आत्मिक और सांसारिक प्रेम, शारीरिक और रूहानी शक्ति देगा।           

चन्द्र नेक हो : हवाई और तरल से बनी चीजो का उत्तम असर होगा। उत्तम भूतकाल के हालत छुपे रहें।
सूर्य नेक हो: स्वयं अपने आप का और संतान का उत्तम प्रभाव होगा। भविष्य उत्तम, राजा प्रजा को मदद उत्तम मिलेगी।   

मँगल नेक हो : मित्र - भाई बन्धु उत्तम सहायक वर्तमान उत्तम। 
मँगल बद ( सूर्य केतु एक साथ) या बृहस्पति ६ ता १ १ : बृहस्पति साधू बनकर चोर के काम करे। सोने का नुक्सान हो। जातक के रास्ते में रूकावट हो, हानि की घटने मंदी से निशानी होगी। 

सूर्य - चन्द्र - मंगल के अलावा किसी ग्रह का साथ हो बृ केवल एक जहान का स्वामी होगा। 

ग्रहण - सूरज या चन्द्र और बृ  साथ तो न केवल गुरु मंदा और निराश बल्कि दृष्टि के ढंग पर जिस घर या ग्रह से सम्बन्ध हो वहां भी मंदी हालत हो, निराश हो, दम घोटू आंधी हो या बर्फानी हवा हो, मंदा भाग्य हो। 
मं, श   या मं, च   -  बृ को देखते हो तो कयाफा आयु रेखा के साथ एक और रेखा होगी और छुपी सहायता मिलेगी और बृ आयु देता होगा।    

शनि से सम्बन्ध : 

शनि नं १ और गुरु नं ६, ७ या 
गुरु नं १ और ३,६,९, में शनि 

धन रेखा जो विवाह से और बढेगी जब तक दोनों में से कोई एक या दोनों नीच न हो यानी शनि नं १ और बृ नं 
१०  में वर्षफल में न आ जाय।
        
शनि नं १ में हो और गुरु ७ में तो गुरु का फल मंदा 
शनि नं २ में हो और गुरु नं ८ , १ २  में तो गुरु का फल मंदा।
श नं ३ बृ ५-९-११  बृ मंदा 
श नं ४ गुरु  २,८,११, १२
श नं १० - गुरु २,३,४,५ 
५,६,७,८,९,११, १२ में अकेला शनि - गुरु अकेला मंदा न होगा। 
शनि नं १,  ६ तो गुरु प्रायः मंदा होगा। 
         

बृ गर हवा तो शनि पहाड़। मानसून पवने कभी भी पहाड़ से टकरायेंगी लाभप्रद वर्षा होगी। पर गर हवा ही उल्ट चल पडे तो न सिर्फ शनि के मकान बिकवा देगी बल्कि शनि के पहाड़ को बारीक मिटटी की तरह पीस कर उनके  कण कण उडा देगी जिसकी वजह प्रायः शुक्र व् संसार की मिटटी या स्त्री जात या दीगर (मुर्दा माया) बुध (वायदा फरामोशी) या राहु की गुप्त शरारतो की आदत होगी। 

खाना नं ६ में शनि सदा शक्की और गुरु जरूर ही मंदा होगा। ऐसे समय चलते पानी में नारियल बहाना या बादाम बहाना उत्तम होगा। 

शनि पहले घरो में और बृ बाद के घरो में तो बारिश की हवा खाली चली जायगी। उल्ट तो उत्तम कीमती वर्षा। 

बृ देखता हो शनि को 

५०  % दृष्टि गुरु खाना नं ५ - शनि नं ९ या गुरु नं ३ शनि नं ९ या १ १  जादूगरी का स्वामी 
२५ %: गुरु नं २ शनि नं ६ : या गुरु नं ८ शनि नं १२ तो  योगाभ्यास का स्वामी 

शनि देखता हो गुरु को तो  

उम्र शनि में पिता पर भारी, मकान शनि जब बनता  हो। 
चश्मा चन्द्र धन हर दम जारी, जमीन चन्द्र जर रखता हो।          

शनि २ या ५ में और गुरु ९ या १ २  तो शनि की आयु ९, १८, ३६ वर्ष गुरु की आयु तक के लिए मंदा, जिसका सबूत उसके मकान में लोहे का ताला मकान बंद, मंद भाग्य का अलार्म। कुदरती और शारीरिक कमजोरी और धन की हालत मंदी होगी।   
__________जारी 
      


गुरु बृहस्पति लाल किताब
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