Venus in Lal Kitab
शुक्र लाल किताब
शुक्र आँख है शनि की पायी, तरफ चारो जो देखता है।
शनि अगर कहीं मारा जावे, बलि वो अपनी देता है।
साथ मंगल के चंदर बनता, बुध केतु जिसमे न हो।
शुक्र अकेला बुरा न करता, बैठा घर ख्वाह किसी ही हो।
घर 7वें जब अपने बैठा, असर नजर, रूह अपनी को।
दे देता ग्रह उसी को है यह, बैठा जो घर सातवें हो।
चन्द्र भला या बुध हो अच्छा, बुरा शुक्र नहीं होता है।
घर तीजे में जब आ बैठा, शुक्र मर्द हो जाता है।
9 वें मंगल बद यह होता, छठे में खुद ही मंदा है।
काग रेखा है तख़्त पे होता, चौथे औरत दो होता हो।
12 दुसरे सबसे उत्तम, दसवे शनि खुद बनता है।
घर पांचवे में पक्की मिटटी, 11 लट्टू बन घूमता है।
घर 8 वें ग्रह सब ही मंदे, शुक्र भी मंदा होता है।
भवसागर से पार है करता, शुक्र गऊ जब होता है।
बदी ख़ुफ़िया तू जिससे दिन रात करता, वक्त मंदा वही तेरे सिर पर पड़ता।
ऐश पसंदी इश्क खुदाई, अकेला बुरा नहीं होता हो।
पाप* नसल का खून गृहस्थी, मिटटी माया का पुतला हो। *राहू-केतु
मर्द टेवे में स्त्री बनता, स्त्री टेवे खुद मर्द हो वो।
उठी जवानी* इश्क में अँधा, बूढे** नसीहते करता हो। *खाना नं 1-6 ** खाना नं 7-12
रवि दृष्टि शनि पे करता, बुरा शुक्र का होता हो।
शनि, रवि से पहले बैठा, नर* ग्रह स्त्री उम्दा है। * सूर्य के अलावा।
नजर शुक्र में शनि जब आता, माया दीगर* खा जाता हो। *अन्य, अन्यथा, फैशन
दृष्टि शुक्र पर शनि जब करता, मदद ग्रह सब करता हो।
शुक्र बैठा जब बुध से पहले, असर राहु का मंदा हो।
बुध पहले से शुक्र मिलता, केतु भला खुद होता हो।
शत्रु* दोनों के साथ जो बैठे, असर दोनों न मिलता हो। *शुक्र ग्रह का शत्रु: सूर्य, चन्द्र, राहु। बुध का शत्रु चन्द्र।
शुक्र मालिक है आँख शनि का, तरफ चारों ही देखता जो।
चोट शनि हो जब कहीं खाता, अँधा* शुक्र खुद होता हो। *जिस घर शनि हो, शुक्र में वही असर दृष्ठि भी उस घर की और होगी मगर दृष्ठि की चाल पिछली तरफ खुद शुक्र की अपनी होगी।
घर पांचवे परिवार बच्चो का, नीच छ्टे खुद होता हो।
असर साथी ग्रह 7 वें देगा, जलती मिटटी घर आठ का हो।
जहर मंगल बद नॉवे बनता, धर्मी शनि घर दसवें हो।
चश्मा दौलत जर 11 उठता, तारे 12 भवसागर जो।
काग रेखा घर पहले बैठा, भला गृहस्थी घर दूजे हो।
शुक्र के ग्रह को साँसारिक भाग्य से कोई सम्बन्ध नहीं। सिर्फ प्यार मोहब्बत की फ़ालतू दो से एक ही आँख हो जाने की शक्ति शुक्र कहलाती है। सब और से बिगड़ी या सब की बिगड़ी बनाने बनाने वाला सब कुछ ढला ढलवा शुक्र होगा।
स्त्री सम्बन्ध गृहस्थ आश्रम बाल बच्चो की बरकत और बडे परिवार का 25 साला समय शुक्र समय होगा। इस ग्रह में पाप करने कराने की नस्ल (राहु - केतु मुश्तरका मसनूई) का खून और गृहस्थी हालत में मिटटी और माया का वजूद है।
मर्द के टेवे में स्त्री और स्त्री के टेवे में मर्द। अकेला बैठा टेवे वाले के लिये हमेशा शुभ और न ही टेवे वाला गृहस्थी सम्बन्ध में किसी का बुरा कर सकेगा।
शुक्र का बुध से संबंध
जब दृष्टि के हिसाब से (25-50-100) आमने सामने के घरों में तो चमकती हुई चांदनी रात में चकवे- चकवी की तरह अकेले अकेले होने का प्रभाव नीचे की तरह होगा:
बुध शुक्र से पहले: केतु उत्तम।
शुक्र बुध से पहले: राहु का बुरी नियत का असर दोनों के मिले असर में मिला होगा।
दृष्टि वाले घरो में बैठा होने के समय शुक्र का प्रभाव प्रबल होगा। लेकिन जब बुध पहले घरों का हो और मंदा हो तो शुक्र में बुध का मंदा असर शामिल होगा जिसे शुक्र रोक नहीं सकता और गृहस्थ परिणाम मंदा होगा।
जब अकेले अकेले बंद मुठी से बाहर हो और 1-7 हो कर बैठे जैसे
शुक्र नं 2 और बुध नं 8
शुक्र नं 8 और बुध नं 2
शुक्र नं 3 और बुध नं 9
शुक्र नं 6 और बुध नं 12
तो दोनों ही ग्रहो का मंदा और चारो (घर) का फल मंदा होगा।
मगर शुक्र नं 12 और बुध नं 6 में दोनों उच्च होगे। केतु का उत्तम फल शामिल होगा। अब दोनों का असर आपस में न मिलेगा।
जब दोनों ग्रह जुदा जुदा और दृष्टि रहित, तो शुक्र जहाँ हो, बुध अपनी खाली नाली से अपना असर उसमे मिला देगा। और शुक्र के फल को कई बार बुरे से अच्छा कर देगा। लेकिन अगर बुध के साथ शुक्र के शत्रु हो तो शुक्र बुध के असर को रोक देगा।
शत्रु ग्रहो से संबंध
शनि और सूर्य आपस में शत्रु है। यदि एक साथ हो तो टेवे वाले का बुरा नहीं होता। जोड़ घटा बराबर होती रहती है। लेकिन जब शनि के साथ बैठे शुक्र तो कोई ग्रह देखे तो शनि उसे जड़ से बर्बाद कर देगा। पर यदि सूर्य शनि का झगडा या सूर्य शनि को देखे तो हो तो शुक्र बर्बाद होगा। लेकिन यदि शनि देखे सूर्य को तो शुक्र का फल उत्तम। यदि शुक्र के साथ साथी या दृष्टि के ढंग से जब शत्रु ग्रह हो तो दोनों की मुश्तरका चीजे, रिश्तेदार, कारोबार पर हर तरफ से उडती हुई मिटटी पड़ती होगी। मंदी किस्मत।
गाय (शुक्र) और हाथी (राहु) का संबंध कहाँ तक अच्छा फल दे सकता है। जब कभी दोनों दृष्टि से मिल रहे हो, शुक्र का फल बर्बाद होगा। लक्ष्मी और स्त्री दोनों बर्बाद। बल्कि आयु तक बर्बाद और समाप्त होगे।
दो बाहम शत्रु ग्रह साथी दिवार में जुदा जुदा ही रहते है। लेकिन अगर शुक्र शत्रु घर में हो और राहु साथी दिवार वाले घर में आ बैठे तो शुक्र का वही मंदा हाल होगा जैसे शुक्र - राहु मुश्तरका।
जन्म कुंडली में जब शुक्र शत्रु ग्रहो को देखता हो, और वर्षफल में शुक्र मंदा हो या मंदे घरो में जा बैठे, तो वो दुश्मन ग्रह जिसको शुक्र जन्म कुंडली में देखता था, वो ग्रह अब शुक्र को मंदा और विषैला करेगा चाहे वर्षफल में न भी देखे। ऐसे टेवे वाला जिससे ख़ुफ़िया बदी किया करता था, अब वही ( चीज, रिश्तेदार, कारोबार राहु युक्त उन दुश्मन ग्रहो जिनको शुक्र ने देखा था, जन्म कुंडली में ) दुश्मन बर्बाद कर देगा।
शुक्र की दो रंगी मिटटी
खाना नं 1:
उठती जवानी में ऐश व् इश्क की लहरों से मिटटी की पूजना में अँधा होगा। काग रेखा या मच्छ रेखा, एक तरफ़ा ख्याल का स्वामी। तख़्त की मालिक रजिया सुलतान मगर एक हब्शी पर मर मिटी।
खाना नं 2:
उत्तम गृहस्थ सिवाये बच्चे बनाने के।
अपनी ही ख़ूबसूरती और स्वभाव के आप मालिक खुदपरस्ती, स्कूल मिस्ट्रेस, हर एक की प्रिय स्त्री पर वो स्वयं किसी को पसंद न करे।
खाना नं 3:
गाय की जगह अब बैल का काम देगी। ऐसे टेवे वाले पर कोई न कोई स्त्री मर ही जाया करती है।
खाना नं 4:
दो स्त्री या दो शादी पर बच्चा दोनों से ही न बने।
खाना नं 5:
बच्चो भरा परिवार पर ऐसे बच्चो को पैदा करने वाला बाप जो उसे बाप न कहे या कह न सके।
खाना नं 6:
न पुरुष न स्त्री खुसरा मर्द या बाँझ स्त्री। धन भी लक्ष्मी भी जिस का कोई मूल्य न दे।
खाना नं 7:
सिर्फ साथी का असर जो और जैसे सभ। बुढ़ापे में उपदेश।
खाना नं 8:
जली मिटटी और हर सुख से नाशुक्रगुजार। अगर उत्तम तो भवसागर से पर कर दे।
खाना नं 9:
मंगल बद। शुक्र को स्वयं अपनी बिमारी के कारण धन हानि। मगर घर में ऐशों आराम के सामान या धन की कमी न होगी।
खाना नं 10:
स्त्री हो तो ऐसी जो पुरुष को निकाल के ले जावे और अगर मर्द तो किसी दूसरी स्त्री को अपने प्यार में रखा ही करता है।
खाना नं 11:
लट्टू की तरह घूम जाने वाली हालत। मगर बचपन की मोह माया वाली भोली स्वाभाव की मूरत। और रिजक के चश्मे का निकलना।
खाना नं 12:
भवसागर से पार लगाने वाली गाय। यानी स्त्री लक्ष्मी जिसकी खुद अपनी सेहत के सम्बन्ध में सारी आयु रोते है निकल जाय।
Venus in Lal Kitab
शुक्र लाल किताब
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